निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर कोर्ट के फैसले पर है सभी की निगाहें

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लखनऊ 18 दिसम्बर 2022: निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के त्रिस्तरीय परीक्षण (ट्रिपल टेस्ट) का मामला सरकार के साथ कई राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ा सकता है। लखनऊ से दिल्ली तक सभी राजनीतिक दलों, चुनाव के दावेदारों और राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें 20 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में होने वाली सुनवाई पर टिकी हुई है। यदि  कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में आता है तो सत्ता और सत्तारूढ़ दल भाजपा को राहत मिलेगी। वहीं, अगर फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में जाता है तो निकाय चुनाव तीन से चार महीने टल सकता है।

पूर्व महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का कहना है कि निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि निकायों में ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले राज्य सरकारों को एक आयोग को गठन करना होगा। ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया को मानते हुए ही आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है। आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहींं हो सकता है। ट्रिपल टेस्ट में यह देखा जाएगा कि ओबीसी वर्ग की आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति कैसी है, उन्हें आरक्षण देने की आवश्यकता है या नहीं? सरकार को आयोग का गठन कर ट्रिपल टेस्ट कराकर ओबीसी आरक्षण लागू करना चाहिए था लेकिन अब तक आयोग का गठन नहीं हुआ है। न ही कोई सर्वे हुआ है।

कोई ठोस तकनीकी आधार ही बचा सकता है

राघवेंद्र सिंह का कहना है कि निकाय आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने का फैसला सुना सकता है। ऐेसा होने पर सरकार को आयोग का गठन करना होगा और ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया अपनानी होगी। इससे चुनाव तीन से चार महीने के लिए टालने पड़ेंगे। वहीं, उनका मानना है कि सरकार की ओर से प्रस्तुत जवाब में अगर कोई ठोस तकनीकी आधार हुआ तो हाईकोर्ट प्रस्तावित आरक्षण के अनुसार ही चुनाव कराने का फैसला भी सुना सकता है।

रेपिड सर्वे को आधार बन सकता है

जानकार बताते हैं कि सरकार कोर्ट में अपने जवाब में ओबीसी आरक्षण के लिए रैपिड सर्वे के आंकड़े पेश करेगी। सरकार का पक्ष है कि निकाय चुनाव से पहले जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित कमेटी से रैपिड सर्वे कराया जाता है। इसके आधार पर ही आरक्षण निर्धारित किया है।

सत्तारूढ़ दल की बढ़ सकती है मुसीबतें

हाईकोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ट्रिपल टेस्ट कराकर ही ओबीसी आरक्षण निर्धारित करने का आदेश देता है तो सत्तारूढ़ दल भाजपा की मुसीबतें बढ़ेंगी। सरकार और संगठन किसी भी स्थिति में पिछड़े वर्ग के आरक्षण को नजरअंदाज कर चुनाव नहीं करा सकते हैं। पार्टी नेताओं का मानना है कि अगर ओबीसी आरक्षण की अनदेखी कर चुनाव कराया गया तो निकाय चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव में भी इसका नुकसान होगा।