लखनऊ 10 दिसम्बर 2022: बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग में 20 वर्ष पूर्व 2003 में संविदा पर हुई भर्तियों में धांधलेबाजी को छिपाने वाले आरोपियों पर एफआईआर दर्ज कराने की तैयारी है। विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से छिपाए जा रहे इस प्रकरण में नवनियुक्ति निदेशक सरनीत कौर ब्रोका ने भर्ती संबंधित फाइल सतर्कता विभाग को उपलब्ध न कराने वाले लिपिकों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के आदेश जारी कर दिए है। अति शीघ्र उनके विरुद्ध कार्यवाही होगी।
आपको बता दें कि प्रारंभ से ही इस प्रकरण को छिपाने का प्रयास किया जा रहा है। इस मामले से संबंधित अभिलेख उपलब्ध कराने हेतु गृह विभाग अब तक आईसीडीएस निदेशालय को एक दर्जन से अधिक अनुस्मारक पत्र लिख चुका हैं, लेकिन निदेशालय द्वारा अभिलेख उपलब्ध नहीं कराये गये। इसी तरह सतर्कता विभाग भी निदेशाल को अभिलेख उपलब्ध कराये जाने हेतु 9 पत्र लिख चुका है। परन्तु निदेशालय के कुछ अधिकारी और लिपिक मिलकर इससे संबंधित अभिलेखों को छिपा रखे हैं।
इसलिए सतर्कता विभाग के 11 वें अनुस्मारक पत्र के उत्तर में निदेशक ने 17 सितबंर-2019 को एक पत्र शासन को भेजा था, जिसमें भर्ती से संबंधित एक भी अभिलेख निदेशालय में उपलब्ध नहीं होने की जानकारी दी गयी थी। यानि समस्त अभिलेख गायब हो गए हैं।
अभी जल्द ही निदेशक का पदभार ग्रहण करने के पश्चात सरनीत कौर ब्रोका के जानकारी में यह प्रकरण आया तो उन्होंने उक्त प्रकरण की शुरुवाती जानकारी प्राप्त कर संविदा पर भर्ती से संबंधित अभिलेख देखने वाले सभी लोंगो के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। निदेशक के इस आदेश से निदेशालय में तहलका मचा है। वहीं, जानकारों के अनुसार, निदेशक के आदेशानुसार एफआईआर हुई तो कम से कम एक दर्जन से अधिक लिपिक कार्यवाही के दायरे में आएंगे।
यह था प्रकरण
साल 2003 में 63 सीडीपीओ और 353 मुख्य सेविका और 294 सीटों पर चपरासियों की भर्ती संविदा पर हुई थी। सूचना मिली थी कि यह भर्ती मानकों और नियमों के विरुद्ध हुई थी। जिसके पश्चात शासन ने विभागीय जांच कराई तो प्रारंभिक रिपोर्ट में धांधली की पुष्टि हुई थी। रिपोर्ट में तीनों पदों पर भर्ती में आरक्षण व्यवस्था व भर्ती प्रक्रिया में नियमों के विरुद्ध कार्य किया गया था।
इस कारण शासन ने इस प्रकरण की सतर्कता विभाग से छानबीन कराने की संस्तुति की थी। उसी समय से गृह विभाग, बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग से संबंधित अभिलेख उपलब्ध कराने के लिए अनेक बार पत्र लिख रहा है, परन्तु अब तक निदेशालय ने अभिलेख उपलब्ध नहीं कराये हैं। 2003 से लेकर अब तक आधे दर्जन से ज्यादा निदेशक आए व गए, लेकिन किसी ने दोनों प्रकरणों से सम्बंधित अभिलेख उपलब्ध नहीं कराया।