लखनऊ 05 दिसम्बर 2022: पब्लिक बाल रामलीला समिति के मंच पर 48 वर्षों तक अपने मुखारबिंदु की लाइनों और गर्जना से अपनी विशेष पहचान बनाने वाले विष्णु त्रिपाठी ‘लंकेश’ का रविवार को स्वर्गवाश हो गया। वे 67 साल के थे और उन्हें कैंसर था। स्वयं को शिव के अतिरिक्त रावण का भक्त कहने वाले लंकेश 1978 से निरंतर रावण की भूमिका करते रहे।
नामित पार्षत अनुराग मिश्रा बताते हैं कि वे वर्ष 2007 से वर्ष 2012 तक पार्षद रहे। चौपटिया में आते-जाते वे चौक की पब्लिक रामलीला से जुड़ गए और ऐसा जुड़े कि उनके अतिरिक्त रावण के किरदार के बारे में सोचना भी असंभव था । 5 मई 2003 को लक्ष्मण मेला मैदान में तत्कालीन गवर्नर विष्णुकांत शास्त्री ने उन्हें” लंकेश” की उपाधि दी थी।
रावण की भूमिका को उन्होंने इस प्रकार से निभाया कि हर व्यक्ति की जुबान पर केवल लंकेश रह गया, विष्णु त्रिपाठी तो महापंडित लंकापति की भूमिका में कहीं गायब हो गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि विष्णु त्रिपाठी इस गुमनामी को ही अपनी सफलता मानते थे। रामकुमार वर्मा कहते हैं कि रावण की भूमिका को समझने के लिए उन्होंने उसके विषय में काफी पढ़ा। वर्ष 2008 से उनकी पत्नी रेनू त्रिपाठी उनके साथ मंदोदरी का किरदार करती आ रहीं थीं। पिछले दो सालों से तबीयत ख़राब होने की वजह से वह मंच पर नहीं आ सके।
सीता तो मोक्ष की पुड़िया है
एक बार उन्होंने बताया था कि सभी को रावण की केवल बुराई ही नजर आती है पर वो तो अच्छाइयों का खजाना था। वो शिव भक्त था। उसे ज्योतिष, रसायन, भौतिक विज्ञान की जानकारी थी। जन्मांग की जानकारी थी और संगीतकार भी था। सभी कहते हैं कि रावण के लिए सीता तो मोक्ष की पुड़िया थी और इसीलिए वो उन्हें उठा लाया था।