रूमी गेट : लखनऊ के रूमी गेट में आई दरारें, दुरुस्तीकरण का कार्य प्रारंभ।

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लखनऊ 16 दिसम्बर 2022: लखनऊ की सिग्नेचर बिल्डिंग यानी रूमी गेट (रूमी दरवाजा) के बिना यूपी की राजधानी लखनऊ का सफ़र पूर्ण नही होता है। कहते हैं कि लखनऊ आए और रूमी गेट नहीं देखा तो क्या देखा। यही कारण है कि लखनऊ की इस धरोहर को सुरक्षित रखने हेतु पुरातत्व विभाग की तरफ से निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं । रुमी गेट के ऊपरी भाग में दरारें आ गई हैं। इसलिए इधर से आने- जाने वाली समस्त गाड़ियों पर यातायात पुलिस विभाग की तरफ से पाबंदी लगा दी है। रूमी गेट को दोनों ओर से बंद कर दिया गया है। जिससे इसको दुरुस्त किया जा सके। आपको बता दें कि रूमी गेट में दरारें आने के पश्चात यह निर्णय लिया गया।फ़िलहाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI ने इसको दुरुस्त करने का कार्य प्रारंभ कर दिया है। जिसका कार्य करीब 4 से 5 माह में पूर्ण हो जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

इस मौसम में काफी तादात में पर्यटक लखनऊ घुमने आते हैं। रूमी दरवाजे को पूरी तरह से बंद किए जाने के कारण पर्यटकों को हताश होना पड़ रहा है। एवं पर्यटकों को अब घुड़सवारी और तांगा सवारी का भी आनंद पूरी तरह से प्राप्त नही हो रहा है। क्योंकि पूर्व में यह सवारी बड़े इमाम बाड़े से प्रारंभ होकर छोटे इमाम बाड़े तक जाती थीं जो कि मध्य में पड़ने वाले रूमी दरवाजे से होते हुए गुजरती थी। पुरातत्व विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. आफताब हुसैन ने कहा कि रूमी गेट के अतिरिक्त लखनऊ की अनेक दूसरी धरोहरों के दुरुस्तीकरण का भी कार्य किया जा रहा है। रूमी गेट को खोखला होने से बचाने हेतु यह उपाय किया जा रहा है।

रूमी गेट का इतिहास 

लखनऊ के इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने कहा कि, रूमी गेट को अवध के चौथे नवाब आसफ़ुद्दौला ने 1784 में निर्मित करवाया था। उस समय विकराल अकाल पड़ गया था और लोग दाने-दाने को मोहताज हो गये थे। इसलिए उन्होंने राहत प्रक्रिया के अंतर्गत बड़ा इमामबाड़ा और रूमी गेट का निर्माण कार्य कराया था। इसे निर्मित होने में लगभग  दो वर्ष का वक़्त लग गया था। वैसे रूमी गेट को तुर्किश गेट भी कहा जाता है। रुमी गेट की ऊंचाई 60 फीट है.इसमें इंडो इस्लामिक शैली के अतिरिक्त राजपूत शैली भी दिखाई देती है । इसे जब बड़े इमामबाड़े की तरफ से देखते हैं तो यह बड़े इमामबाड़े के प्रवेश द्वार की तरह ही प्रतीत होता है। और जब इसे घंटाघर की तरफ से देखा जाए, तो यह एक गले के हार की तरह दिखता है। यह पुराने लखनऊ में बड़े एवं छोटे इमामबाड़े को मिलाता है।