Lucknow Tunday Kabab: जानिए टुंडे कबाब का इतिहास, कैसे पड़ा टुंडे कबाब का नाम।

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लखनऊ 03 दिसम्बर 2022: लखनऊ का विख्यात टुंडे कबाब वर्षों से अपने स्वाद के लिए पहचाना  जाता है। इसके स्वाद के सामने देश भर के आधुनिक होटल के शेफ भी कमजोर पड़ जाते हैं। मांसाहारी खाने वालों के बीच बहुत विख्यात है लखनऊ का टुंडे कबाब। सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी दुकान पर ग्राहक दूर दूर से टुंडे खाने आते हैं। इसके अतिरिक्त वो ये भी जानना चाहते हैं कि वास्तव में ऐसा क्या विशेष  है इन टुंडे कबाबों में।

लखनऊ में 125 वर्ष पुराने टुंडे कबाब की दुकान के मालिक हाजी रईस अहमद की  मृत्यु हो  गयी है। उनकी  मृत्यु के पश्चात एक बार पुनः टुंडे कबाब प्रकाश में आ गए हैॆं।आ ज हम आपको टुंडे कबाब का इतिहास बताने जा रहे हैं। कि क्यों 100 वर्षों से खाने के शौकीन इनको पसंद कर रहे हैं।

टुंडे कबाब का स्वाद बेमिशाल

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नाम आते  ही सबसे पहले आपके दिमाग में दो बातें आती होंगी। लखनऊ की बोलचाल और लखनऊ का खानपान। लखनऊ के खानपान में भी सबसे विख्यात टुंडे कबाब का ध्यान हमारे दिमाग में हो उठता है। 

इनके लजीज स्वाद की खुशबू न सिर्फ देश में अपितु विदेशों तक में विख्यात है। देशी और विदेशी पर्यटक जो भी यहां आते हैं, पता पूछते-पूछते अकबरी गेट की इस दुकान पर एक बार आ ही जाते हैं। 117 सालों में अपनी शुरूआत के बाद यह दुकान पहली बार जून में एक दिन बंद थी।इसका कारण मांस की आपूर्ति नही हो पाना। दुसरे दिन दुकान खुलते ही टुंडे कबाब केचाहने वालों की भीड़ यहां उमड़ पड़ी, यहपता करने के लिये कि सब ठीक तो है ना। अब तो आपको पता चल ही गया होगा  की कितना विख्यात है लखनऊ का ये पकवान।

टुंडे कबाब की दुकान बंद होने का समाचार देश भर की मीडिया में भी चर्चित रहा। लोग हैरान थे कि एक व्यंजन की दुकान बंद होने की सूचना मीडिया में भी इतनी चर्चित कैसे हो गई। वास्तव में ये असर उस स्वाद का था जिसके समक्ष देश भर के अत्याधुनिक एवं फाइव स्टार होटलों के व्यंजन भी  कमजोर हैं। 

टुंडे कबाब की कहानी 

लखनऊ के टुंडे कबाब का इतिहास 1905 से प्रारम्भ होता है, जब यहां पहली बार अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई। असल में टुंडे कबाब की कहानी तो इससे भी एक सदी पुरानी है। दुकान के मालिक 70 साल के  रईश अहमद ने बताया कि उनके पूर्वज भोपाल के नवाब के यहां बावर्ची हुआ करते थे।

भोपाल के नवाब खाने पीने के बहुत शौकीन थे।अधिक उम्र के कारण मुंह में दांत नहीं रहे तो उन्हें खाने पीने में परेशानी होने लगी। इसके बाद भी  उनकी और उनकी बेगम की खाने पीने की आदत नहीं गई। इस कारण से उनके लिए एक ऐसा कबाब बनाने का विचार किया गया  जिसे सरलता से खाया जा सके। इस प्रकार से प्रारम्भ  हुई टुंडे  कबाब की यात्रा।

इसके लिए गोश्त को महीन  पीसा गया और उसमें पपीते मिलाकर इस प्रकार का कबाब बनाया गया जो मुंह में डालते ही गल जाए। स्वाद के लिए उसमें चुन-चुन कर अलग-अलग प्रकार मसाले मिलाए गए। इसके पश्चात हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ चला आया । यहाँ पर उन्होंने अकबरी गेट के पास गली में छोटी सी दुकान खोली।

कबाब से टुंडे कबाब कैसे पड़ा नाम

इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी एक सुन्दर कहानी है। वास्तव में टुंडे उसे कहते है जिसका हाथ न हो। रईस अहमद के पिता हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन हुआ करते थे। एक बार पतंग के चक्कर में ही उनका हाथ टूट गया। जिसके कारण उन्हें बाद में हाथ कटवाना पड़ा। वे अब पतंग नहीं उड़ा सकते थे इसलिए मुराद अली पिता के साथ दुकान पर रहने लगे। उनके हाथ न होने के कारण जो भी यहां कबाब खाने आते वो टुंडे के कबाब कहने लगे और यहीं से नाम पड़ गया टुंडे कबाब।

मसाले का राज आज भी एक राज ही है

आप जानकर हैरान होंगे की दुकान के मालिक रईस अहमद के परिवार के अतिरिक्त अन्य कोई भी इसे बनाने का तरीका और इसमें मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में कुछ नहीं जानता है। हाजी परिवार ने इस राज को आज तक किसी को भी नही बताया है। यहां तक की अपने परिवार की बेटियों को भी नहीं। बस इसीलिए कि टुंडे कबाब का जो स्वाद यहां मिलता है, वो पूरे देश में कहीं और नहीं मिलता।

टुंडे कबाब की रेसिपी

हाजी रईस ने बताया कि  कबाब में सौ से भी अधिक मसाले मिलाए जाते हैं। आज भी उन्हीं मसालों का प्रयोग किया जाता है जो सौ वर्ष पूर्व मिलाए जाते थे। उन्हें बदलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। कोई टुंडे कबाब की रेसिपी जान न जाये इस कारण मसालों को अलग अलग दुकानों से खरीदा जाता है। फिर घर के ही एक बंद कमरे में उन्हें कूट छानकर बनाते  हैं। इन मसालों में से कुछ तो ईरान और दूसरे देशों से भी ख़रीदे जाते हैं।

कभी एक पैसे में मिला करते थे दस कबाब

आज इन टुंडे कबाबों की प्रशंसा पूरी देश-दुनिया में है। जब दुकान शुरू हुई थी तो एक पैसे में दस कबाब मिलते थे समय के साथ इसकी कीमतें बदने लगीं। अब टुंडे कबाब की दुुुकान में 60 रूपए में बीफ के 4 कबाब मिलते हैं। इसके लिये पराठा अलग से लेना पड़ता है। वहीं मटन के 120 रुपए में 4 कबाब मिलते हैं। टुंडे कबाब के अतिरिक्त  इस दुकान पर रुमाली रोटी,अवधि खीर,चिकन सीक कबाब और ब्लैक बफैलो कबाब, रोस्टेड चिकन,चिकन टंगड़ी भी यहां पर उपलब्ध रहता है।

टुंडे कबाब की पहचान बॉलीवुड तक

लखनऊ के प्रसिद्ध टुंडे कबाब की पहचान बॉलीवुड तक है। इस स्वाद का ही असर है कि शाहरुख खान, अनुपम खेर, आशा भौंसले जैसे और सुरेश रैना जैसे बड़े बड़े मशहुर लोग टुंडे कबाब खाने यहां आ चुके हैं। बॉलीवुड के सुपर स्टार शाहरुख खान अधिकतर टुंडे कबाब बनाने वाली इस टीम को मुंबई स्थित अपने घर मन्नत में अनेक कार्यक्रमों में बुलाते हैं। स्वर्गीय अभिनेता दिलीप कुमार भी इनके बड़े चाहने वालों में से एक थे।