लखनऊ 23 दिसम्बर 2022: स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण शुरु किए जाने के सम्बन्ध में इलाहाबाद उच्च न्यायलय की लखनऊ बेंच में बृहस्पतिवार को जनहित अपीलों पर वक़्त कम होने के कारण सुनवाई पूर्ण नहीं की जा सकी। अदालत ने केस की अगली सुनवाई शुक्रवार को तय की है। इसके अतिरिक्त अधिसूचना निकालने पर लगायी गयी पाबंदी भी 23 दिसम्बर तक बढ़ा दी गयी है।
न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय एवं न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने यह आदेश रायबरेली के निवासी सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय व अन्य की जनहित अपीलों पर दिया। बीते बुधवार को सुनवाई के समय अपिलार्थियों की तरफ से कहा गया था कि, निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक तरह का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक या शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई मतलब नहीं है। इसलिए ओबीसी आरक्षण जारी किए जाने से पूर्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनिश्चित की गई व्यवस्था के अंतर्गत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा तीसरा परीक्षण कराना आवश्यक है।
जनहित अपीलों में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का वास्तविक फायदा दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मामले उठाए गए हैं। अपिलार्थियों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अंतर्गत जब तक राज्य सरकार तीसरे परीक्षण की कार्यवाही पूर्ण नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं मिल सकता। राज्य सरकार ने इस प्रकार का कोई परीक्षण नहीं किया। यह भी कहा कि, यह कार्यवाही पूर्ण किये बिना सरकार ने विगत 5 दिसंबर को आखिरी आरक्षण की अधिसूचना के अंतर्गत ड्राफ्ट आदेश जारी कर दिया। इससे यह स्पष्ट है कि,राज्य सरकार ओबीसी को आरक्षण देने जा रही है। इसके अतिरिक्त सीटों का रोटेशन भी नियमानुसार किए जाने का अनुरोध किया गया है। अपिलार्थियों ने इन खामियों को समाप्त करने के पश्चात ही चुनाव की अधिसूचना निकालने का अनुरोध किया है।
राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये अपने जवाबी हलफनामे में बताया है कि, स्थानीय निकाय चुनाव के संबंध में 2017 में कराये गये अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार समझा जाए। सरकार ने बताया है कि ,इसी सर्वे को तीसरा परीक्षण समझा जाए। उन्होंने बताया है कि, ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं मिल सकता। पिछली सुनवाई में उच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा था कि, किन प्रावधानों के अंतर्गत निकायों में प्रशासकों की भर्ती हुई है? जिस पर सरकार ने बताया कि, 5 दिसंबर 2011 के उच्च न्यायालय के निर्णय के अंतर्गत इसका प्रावधान है।