लखनऊ 29 नवम्बर 2022: गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव व दो उच्च अधिकारीयों के योगदान की प्रारम्भिक जाँच शुरु कर दी है। सीबीआई ने उनसे विस्तृत जांच के लिए पूछताछ की अनुमति मांगी है। इस कारण शासन ने फैसला लेने के लिए सिंचाई विभाग से संबंधित कागजात मंगाया है। शासन के एक अधिकारी ने कहा कि कागजात के अनुसार प्रकरण में इन लोगों का योगदान मिलने पर सीबीआई को पूछताछ की अनुमति दे दी जाएगी।
गोमती रिवर फ्रंट परियोजना के लिए सपा सरकार ने 2014-15 में 1513 करोड़ रुपये जारी किए थे। सपा सरकार के समय काल में ही 1437 करोड़ रुपये आवंटित कर दिए गए थे। आवंटित बजट की 95% धनराशि जारी होने के पश्चात 60% कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। न्यायिक पड़ताल में तो इस परियोजना को भ्रष्टाचार का केंद्र करार दिया गया। परियोजना के लिए जारी धनराशि को खपाने के लिए अभियंताओं एवं अफसरों ने मिलकर घोटाला किया।
साल 2017 में पदभार ग्रहण करते ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने गोमती रिवर फ्रंट की न्यायिक जांच कराई थी। न्यायिक जांच में काफी घोटाला प्रकाश में आने पर प्रकरण सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया। सीबीआई कई अभियंताओं को हिरासत में ले चुकी है। एवं, दो आईएएस अधिकारी सहित तत्कालीन सिंचाई मंत्री के योगदान की भी सीबीआई जांच करना चाहती है।
डिफॉल्टर गैमन इंडिया को ठेका देने के लिए निविदा की शर्तों में चुपचाप से परिवर्तन कर दिया। इन परिवर्तनों को फाइलों में तो नोट किया गया, पर उनका प्रकाशन कहीं नहीं कराया गया। बजट को न केवल सुनियोजित तरीके से खर्च किया गया, बल्कि विजन डाक्युमेंट बनाने तक में करोड़ों का घोटाला किया गया। इसके लिए न्यायिक जांच पत्रावली में परियोजना से सम्बंधित अधिशासी अभियंता, अधीक्षण अभियंता, मुख्य अभियंता और प्रमुख अभियंता के अतिरिक्त अनेक उच्च अफसरों को मुख्य दोषी करार दिया गया था।
शासन के सूत्रों के अनुसार,जो दो आईएएस अफसरों को देखरेख की जिम्मेदारी थी, उनके बारे में यह सामने आ जा रहा है कि उन्होंने निविदा की शर्तों में परिवर्तन हेतु मौखिक या लिखित तरीके से कोई आदेश तो नहीं दिया। मौखिक आदेश की बात सामने आने पर इसकी भी पड़ताल की जायेगी कि संबंधित अभियंताओं ने इसका जिक्र फाइल पर किया है अथवा नहीं? फाइल पर मौखिक आदेशों के क्रम में किये गये निर्णय भी सीबीआई की पड़ताल का भाग बनेंगे। वहीं, शिवपाल के सम्बन्ध में यह जानकारी एकत्रित की जा रही है कि गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में अभियंताओं को अतिरिक्त पदभार देने में उनका क्या योगदान रहा? बिना निविदा कार्य देने या चुपचाप तरीके से निविदा की शर्तें परिवर्तित किये जाने में भी उनके योगदान की जाँच हो रही है। किसी भी पूर्व मंत्री ने अपने मंत्री रहते कोई फैसला लिया हो तो उस समय के घोटाले से संबंधित प्रकरण में पूछताछ के लिए सरकार से अनुमति आवश्यक होती है। इसी प्रकार से अफसरों के सम्बन्ध में भी यही प्रावधान है।