लखनऊ 5 नवंबर 2021: लखनऊ पतंगबाजी के लिए फेमस है। दीपावली के दूसरे दिन लखनऊ में जमकर पतंगबाजी होती है। पतंगबाजी का इतिहास सालों पुराना है यहां पतंगबाजी को नवाबी शौक भी कहते हैं। माना जाता है सबसे पहले चीन के लोग अपना मन बहलाने के लिए पतंगें उड़ाया करते थे। इसके बाद धीरे धीरे पतंगबाजी भारत में भी प्रवेश कर गई, जिसे यहां बहुत पसंद किया गया।
नवाबी काल से चली परम्परा:
दीपावली के दिन समृद्धि की देवी मांं लक्ष्मी और शोभता के प्रतीक श्री गणेश की पूजा के दूसरे दिन जमघट होता है। लखनऊ में यह परंपरा 300 वर्ष पुरानी है। बताया जाता है कि मां की आराधना के दूसरे दिन न तो प्रतिष्ठान खुलते हैं और न ही बच्चों के स्कूल। अन्न कूट और गाेवर्धन पूजा को लेकर जमघट की धार्मिक मान्यताएं हैं कि दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी की रक्षा की थी। उस दिन काम के बजाय भगवान की आराधना करना शुरू कर दिया गया। इसी लिए इस दिन सिर्फ भगवान गोवर्धन की पूजा होती है। कोई भी काम नहीं करता। घर के बाहर एक दीपक जलाया जाता है।
पतंगबाजी के बादशाह बड़े शौकीन थे:
पहले के समय में बादशाह पतंग बाजी को काफी पसंद करते थे और काम्पटीशन भी कराते थे। कॉम्पटीशन के दौरान जो भी पतंगबाज जीतता था उसे इनाम के साथ नौशेखा की उपाधि से नवाजा जाता था। पतंग लड़ाने की शुरूआत 1800 से नवाब सआदत अली खां ने शुरू किया था। इसके बाद बादशाह अमजद अली भी पतंगबाजी के जबरदस्त शौकीन थे। मीर अम्दू, ख्वाजा, मिट्ठन और शैख इमदाद अपने जमाने के मशहूर पतंगबाज थे।
पतंगबाजी की परंपरा अभी भी जीवित है:
करीब 300 साल पुरानी यह परंपरा अभी भी जीवंत है। इस दिन लोग टोलियां बनाकर दोपहर बाद जबरदस्त पतंगबाजी करते हैं। सुबह से ही पतंगों के दुकानों पर जबरदस्त भीड़ होती है। कुछ पतंगबाज दीपावली के दिन पतंग खरीदकर पूजा करते हैं और दूसरे दिन उसी से शुरुआत करते हैं। यह भी कहा जाता है कि राजा पहले जमघट के दिन ही जुआ खेलते थे। आसपास के रियासत के राजा आकर राजपाट तक हार जाते थे। साल में एक ही बार दीपावली के दूसरे दिन जुआ खेला जाता था। हालांकि जुआ अब प्रतिबंधित है।
पतंगबाजी की ही देन है बिजली:
कहा जाता है की हम जिस बिजली का इस्तेमाल कर रहे है वो भी पतंग की ही देन है। 1752 में अमेरिका के वैज्ञानिक बैजामिन फ्रैंकलिन भी पतंग उड़ा रहे थे। आकाशीय बिजली चमकने से उनके हाथ में झनझनाहट हुई और इसी आधार को रख के फ्रैंकलिन ने बिजली का आविष्कार किया।
बरेली का मांझा और लखनऊ की पतंग:
लखनऊ शहर में भी पतंग के मांझे बड़े पैमाने पर बनते हैं, लेकिन बरेली के मांझे की बात ही अलग है। डोर में लगने वाला केमिकल खास होता है, जबकि, पतंग लखनऊ की पसंद की जाती है। लखनऊ में कारीगर के नाम पर पतंगों की मांग होती है। हमेशा की तरह इस बार भी लखनऊ की पतंग और बरेली का मांझे की मांग सबसे ज्यादा है। हर शौकीन पतंगबाजों को बरेली का मांझा ही पंसद आता है।