लखनऊ 27 जनवरी 2023: राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने उत्तर प्रदेश दिवस समारोह के तहत गुरुवार को राजभवन के गांधी सभागार में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स-2022 व 36 वें नेशनल गेम्स-2022 में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के सम्मान समारोह को संबोधित किया।
राज्यपाल ने बताया कि,बसंत पंचमी के पवन पर्व पर खिलाडियों के सम्मान की ख़ुशी है। मेरठ खेल विश्वविधालय में शिलान्यास हेतु जब पीएम मोदी आये थे, तो खिलाडियों से वार्ता करते हुए कहा था कि,आप जहाँ जाते हैं वहां के प्राइमरी-सेकेंडरी स्कूल के बच्चों को सिखाएं, आपका टैलेंट निकटवर्ती लोगों तक भी पहुचना चाहिए। इससे उनसे अधिक आपको फायदा होगा। बच्चों के साथ खेलने पर आनंद के साथ-साथ अभिभावक भी आप की सराहना करते हैं।
राज्यपाल ने कहा कि, जब कोई खिलाडी बनता है तब उनकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक क्षमता के साथ उसके अनुशासन में भी वृद्धि होती है ।मानव जीवन में संतुलन बनाये रखने हेतु अनुशासन आवश्यक है, जब खिलाडी आमने-सामने खेलते हैं तो कभी हार तो कभी जीत होती है। हार पर निराश न होकर जितने का प्रयास करना चाहिए एवं जीतने पर कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। बल्कि नम्रता, विवेक व मदद का विचार होना चाहिए।
राज्यपाल ने कहा, खिलाडी को खेल के साथ पढाई भी जारी रखनी चाहिए, नौकरी के लिए डिग्री एवं खिलाडी का प्रमाण पत्र होने प रआपका चयन किया जाता है। शैक्षिक प्रमाण पत्र के साथ आप खेल की दुनिया में नाम रोशन करते हैं।
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी खेल आवश्यक
राज्यपाल ने कहा कि, स्वास्थ्य की दृष्टी से भी खेल आवश्यक होता है। पहले जो बच्चे बीमार होते थे अब नही होते, दवाई की जगह मैदान में खेलो। वह खुद विश्वविधालय में खो- खो की चैम्पियन थीं। बी एस सी, एमएससी की पदाई करते समय वे मैदान में जाकर खेलती भी थीं, फिर घर जाकर खाना भी बनती थीं। परम्परागत खेलों [कबड्डी, दौड़ और खो-खो इत्यादि] में कोई खर्च नहीं है।
राजभवन में 40-45 बच्चियों को जुडो सिखवाया। वे स्कूलों में मैडल जीत कर लाती हैं, अब लड़कों को जुडो सिखाना प्रारंभ किया गया है। राज्यपाल ने कहा, खिलाडियों को आगे आने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार सुविधाएँ उपलब्ध करा रही है। लगभग 22-23 खेल हमारे बच्चे सीखते एवं प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं।
बैठने एवं बात करने से नहीं खेलने से मिलता है सब कुछ
राज्यपाल ने खिलाडियों का समर्थन करते हुए कहा कि, बैठने एवं बात करने से कुछ नही मिलता खेलने से सब मिलता है। बेटियां 240 किग्रा का वजन उठा रहीं हैं, सुबह 4 बजे उठना पड़ता है। अनेक बार मैंने देखा कि, बच्चों के साथ माँ भी जाती हैं। 2-3 घंटे व्यायाम के पश्चात माँ बच्चों को घर लाकर तैयार कर स्कूल भेजती हैं। माँ सबसे ज्यादा मददगार होती है। मै खिलाड़ियों से यही कहती हूँ कि, खिलाडियों अपना मैडल माँ को पहना देना और कहना कि आप ही के प्रयास से यह मैडल प्राप्त हुआ।
घर परिवार एवं शासन से प्राप्त हुई सुविधाओं का सम्मान करें यदि मैडल नहीं मिला तो निश्चय करिये कि, अगली बार आऊंगा तो मैडल लेकर आऊंगा। अनेक खिलाडियों के पास खेलने की सुविधा नही होती व मैदान नहीं होते, अनेक माता -पिता कहते है कि, अपने खेत में शूटिंग रेम्प तैयार किया एवं बच्चों को सिखाया। उनके कहने का तात्पर्य होता है कि, खेती नहीं होने से अनाज नही पैदा होगा तो चलेगा, बेटा-बेटी खिलाड़ी बन गये तो सब मिल जायेगा।
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